आज नये रंग दे दो अपने तरकश तीर कमानो पर
फेर ना पाये कोई दुश्मन पानी सब अरमानो पर
फेर ना पाये कोई दुश्मन पानी सब अरमानो पर
बढ़ो जवानो आज उठा लो विन्ध्याचल को शानो पर
टूट न पाये बिजली कोई भरे हुए खलिहानो पर
कोई बगिया उजड़ न पाये कोई घर बरबाद न हो
चोर बज़ारी मक्कारी व गद्दारी आबाद न हो
चोर बज़ारी मक्कारी व गद्दारी आबाद न हो
बिन दहेज के मांग बहन की करे कभी फरियाद नहीं
कोई चूड़ी खनक खनक कर कोठों पे नाशाद न हो
फिर से कोई माँग न उजड़े गोदी फिर विरान न हो
किसी स्वार्थ की बलिवेदी पर वीरों का बलिदान न हो
कोई धरती तड़फ तड़फ कर बेवा सी बेजान न हो
इस धरती का कोई कोना खुशियों से अनजान न हो
किसने माँ का दूध पिया है किसमे भरी जवानी है
किसकी रग मे खून बह रहा किसमे कितना पानी है
वीर शिवाजी के वंशों में सोई अलख जगानी है
दुहराएंगे परम्परा फिर जो बन चुकी कहानी है
इतराये ना कोई बगुला चलकर हंस की चालों में
धमकी दे ना कोई गीदड़ छिपकर शेर की खालों में
संभल संभल कर पाँव बढ़ाना घिर न जाना जालों में
दुश्मन घात लगाये बैठा अपनी गहरी चालों में
कोई ढील न आने पाये श्रम के तानो बानो में
समय सुनहरा बीत न जाय आलस और बहानो में
कोई हमसे टकराये ना अपनी झूठी शानो में
शिवजी और शिवाजी बनकर आते हैं मैदानो में
होली ऐसी डूब न जाये रंगों और गुलालों में
फिर से नादिर चढ़ ना जाये मंदिर और शिवालों में
एक लाश बेकफ़न रहे और एक ना लिपटे शालों में
कैद ना कर ले दौलत कोई अपने घर की आलों में
धरती अपनी अम्बर अपना अपना नया बिहान रहे
दिया जलेगा निश्चित अपना आंधी या तूफान रहे
गिरकर उठने उठकर बढ़ने का दिल में अरमान रहे
जान हथेली पर लेकर के बढ़ता हर एक जवान रहे
-:-:- बसंत देशमुख -:-:-
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