मिट्टी के इन्सान नहीं है

अगर सुनो तो
तुम्हें सुनायें
उन लोगों की रामकहानी ।
जिनके श्रम से
पत्थर पिघल पिघलकर
इस्पाती शकलों में ढलता ।
जिनके श्रम से
उगती पकती फसल खेत में ।
जिनके श्रम से
हरियाली है कंही रेत में ।
जिनके हाथों ने
जब भी थामी कुदाल है ।
नदियां ठहर गयी
पर्वत का झुका भाल है ।
जिनके पांवों को
रोडों ने दिए रास्ते ।
जिनने झेले हंसते हंसते
कई हादसे ।
जिनके सीनों पर
हिमालया का संबल है ।
जिनकी रग में
साथ लहू के गंगाजल है ।
उनके बारे में लिखना
आसान नहीं है
अरे मशीनो के पुर्जे हैं
मिटटी के इन्सान नहीं है ।
उनके बारे में कुछ कहना
सरल नहीं है
उनका जीवन इतना तीखा
जितना कोई गरल नहीं है ।
नीलकंठ के बेटे हैं ये
श्रम का अमृत बाँट
जहर को पी लेते हैं
झोपड़ियों में जहां
जिन्दगी पैदा होते
मर जाती है
वहां उमर भर
क्रूर मौत को
जी लेते हैं ।

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