नये खून को बागी कर दो

मुझे विश्वास है
तुम्हारी गर्भवती कवितायें
कल सड़कों पर
एक क्रांति को जन्म देगी
इसलिये
मेरे देश की नयी कलमों
उठो नये गीत लिखो
जवानी को झकझोर दो
जिंदगी को नया मोड़ दो
जीने की परिभाषा बदलो
घुटती सांसों की अभिलाषा बदलो
गलियों में मुनादी कर दो
नये खून को बागी कर दो .

हर चौराहे पर रख दो
एक जलती हुई मशाल
हर आदमी को बांट दो
कफन का कपड़ा
एक खंजर एक ढाल
दीवारों पर लिख दो
इनकलाबी नारे
की हमें देश के वास्ते
तोड़ना है
आसमान के तारे
अफसोस !
इस देश में
सुख रही हैं
श्रम की नदियाँ
उपजाऊ कछारों में
उग रहे हैं
बेशरम के पौधे.
भूखी पीढ़ी
बस्तियों मे क्रांति के बीज
बो रही है
शहीदों की आत्मा
सड़कों पर रो रही है
हल उठाने वाले हाथों ने
हथियार उठा लिया है
चिमनियों ने आकाश
सर पर उठा लिया है
सबकी ज़बान पर
एक ही बात
कँहा है सबेरा
कितनी लम्बी है रात
कुछ लोग मौज में सो रहे हैं
कुछ लोग फुटपाथ पर रो रहे हैं
कब तक रोयें ?
आँसुओं की फसल
कहाँ तक बोयें ?
सदियों से जारी
यही सिलसिला है
पसीना गवांकर
लुटा काफिला है
श्रम की डोली
जो कंधों पर उठाये चलते रहे
उनकी मंजिलों को
रास्ते ही स्वयं छलते रहे
सावधान
अब किसी नारे के जनाज़े मे
कम से कम
हमें शामिल मत करना
हम जाग चुके हैं
कोरे आश्वासनो से
अब हमें गाफिल मत करना !!!

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