सारा देश उदास हो जाता

जेठ की तपती दोपहर
चिलचिलाती धूप
न्यायालय का
मजबूत परकोटा
जिसने कुतर्कों से,
सत्य को
भीतर जाने से
कई बार टोका
उस पर लिखे गये
तरह तरह के चुनावी नारे
(की हम देश के वास्ते
तोड़ लायेंगे आसमान के तारे)

और ठीक वहीं
एक भिखमंगे की
लावारिश लाश
जो गलियों से
जिंदगी के टुकड़े बटोरता था
आज कहीं से
मौत को मांग लाया
लगता है
गरीबी हटाओ अभियान में
एक महान देश
एक भिखमंगे को
भूख की सलीब पर टांग आया
गुजरती है
राहगीरों की भीड़
न आँखें झपकती हैं
न पाँव रुकते हैं
न आंसू गिरता है
न माथे झुकते हैं
यदि यहाँ मर गया होता
कोई वकील कोई डॉक्टर
किसी बड़े स्कूल का बड़ा मास्टर
कोई नेता या कोई अभिनेता
या किसी रईस का बदचलन बेटा
तो सारा शहर
उदास हो जाता
सारा देश
उदास हो जाता

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