गुनाहों की बस्ती मे

यहाँ हथेली पर नसीब की, खींची मिली कुछ अजब लकीरें
यहाँ  कोयले  की  कीमत  पर,  बिक  जाते  हैं असली  हीरे

यहाँ  कसौटी   की  चौखट  पर, झूठे  जौहरियों    के   पहरे
मोती केवल उनके हाथ लग रहे, जो केवल सतहों पर ठहरे

यहाँ  अमावस  का अंधियारा, अपना  सूर्यवंश  लिखता  है
हंसों   की   टोली   मे   बगुला, परमहंस  जैसा  दिखता   है

यहाँ  पथों  पर  कर्तव्यों  के, रक्षक  ही  बन  जाते  भक्षक
जिन्हे  पूजते  दूध  पिलाकर, डस  जाते  वे बनकर तक्षक

यहाँ स्वार्थ की खातिर केवल, लोग बने जनता के सेवक
बीच  धार   मे  नाव   डुबकर, यहाँ   तैरने   लगते   केंवट

यहाँ  धूप  मे  संघर्षों  की, श्रमिक  झुलसते  निर्माणों  के
लोग  छाँव  से  सुविधाओं की, दृश्य  देखते  बलिदानो के

यहाँ  इमारत  गढ़ने  वाले, स्वयं  झोपड़ों  मे  रहते  हैं
बाँध  बनाते जो नदियों में, स्वयं नालियों मे  बहते  हैं

यहाँ  राजपथ  गढ़ने  वाले , पगडंडी  सी  टूट  रहे  हैं
जिनने रोपे वृक्ष अनेकों, खुद जीवन भर  ठूंठ  रहे  हैं

यहाँ गलाते हैं जो लोहा, स्वयं मोम सा गल जाते  हैं
ऐसे  बेबस  सूरज  हैं  जो,  दोपहरी  मे  ढल  जाते  हैं

यहाँ  उगाते हैं जो  फसलें, दानो को मुहताज़ खड़े  हैं
किसके शापित राजकुँवर हैं, निर्वासित बेताज़ पड़े हैं

यहाँ गुनाहों की बस्ती मे, शिलालेख हैं  सदाचार  के
यहाँ  मंदिरों के सीनो पर, दृश्य खुदे हैं बलात्कार के

यहाँ मोम की कलम झेलती, पिघले इस्पातों की पीड़ा
फिर भी हमने उठा लिया है,कविताएं लिखने का बीड़ा

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