(१)
उथला तीर किसी सरिता का ही पावन पनघट होता है
भव्य शहर का निर्जन कोना अभिशापित मरघट होता है
लज्जा को तो ढंक सकने मे असफल है झीना आंचल-
पलकों का लज्जा से झुकना ही सुन्दर घूंघट होता है
भव्य शहर का निर्जन कोना अभिशापित मरघट होता है
लज्जा को तो ढंक सकने मे असफल है झीना आंचल-
पलकों का लज्जा से झुकना ही सुन्दर घूंघट होता है
(२)
विश्वासों के जिस्म दगा के साँचों में ढलते रहते हैं
तिरस्कार के फूल सुनहरे सायों में खिलते रहते हैं
धोखेबाज आदमी हरदम कुत्तों सा दर दर फिरता है
वफादार कुछ कुत्ते हैं जो महलों मे पलते रहते हैं
(३)
है विरह की रात अब जो कल मिलन की रात होगी
देख लेना ग्रीष्म की ही गोद मे बरसात होगी
हर खुशी में आंख से आँसू निकल कर ये कहा है
चार दिन की चांदनी है फिर अंधेरी रात होगी
देख लेना ग्रीष्म की ही गोद मे बरसात होगी
हर खुशी में आंख से आँसू निकल कर ये कहा है
चार दिन की चांदनी है फिर अंधेरी रात होगी
(४)
सारी दुनिया को सुलाकर रात खुद सोती नहीं है
माँझियों को भी डुबाकर नाव खुद रोती नहीं है
अक्ल के अंधों की दुनिया में अंधेरा ही रहा है
लाख हैं सूरज चमकते रोशनी होती नहीं है
माँझियों को भी डुबाकर नाव खुद रोती नहीं है
अक्ल के अंधों की दुनिया में अंधेरा ही रहा है
लाख हैं सूरज चमकते रोशनी होती नहीं है
-:-:- बसंत देशमुख -:-:-
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