दर्द की बस्ती बसाकर आंख में
होंठ पर कोंपल उगाई प्यार की
हर सुबह कटी किसी शमशान में
शाम को खुशियाँ मिली त्योहार की
जिंदगी तपती हुई मरुभूमि है
दूर तक छाया नहीं है वृक्ष की
कोख में उपजी कटीली झाड़ियाँ
आंधियाँ मँडरा रही हैं गिद्ध सी
हर यहाँ चेहरा मुखौटे है लिये
पुण्य की चादर लिये हर पाप है
प्यार का अमृत जिसे देते रहे
हाय वो तो आस्तीन का साँप है
होंठ पर कोंपल उगाई प्यार की
हर सुबह कटी किसी शमशान में
शाम को खुशियाँ मिली त्योहार की
जिंदगी तपती हुई मरुभूमि है
दूर तक छाया नहीं है वृक्ष की
कोख में उपजी कटीली झाड़ियाँ
आंधियाँ मँडरा रही हैं गिद्ध सी
हर यहाँ चेहरा मुखौटे है लिये
पुण्य की चादर लिये हर पाप है
प्यार का अमृत जिसे देते रहे
हाय वो तो आस्तीन का साँप है
-- : बसंत देशमुख :--
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