राजनीति के खिलाड़ी

देश के ये कर्णधार
राजनीति के मर्मज्ञ
कर रहे हैं
कौन सा यज्ञ?
खेत जो लहलहाते थे
आज सूखे हैं
कल तक जिन्हें
नसीब होती थी
एक ही पहर रोटी
आज दोनों पहर भूखे हैं

उस पर
उन्नति के ये दावे
कर्ज़ों की यह नुमाइश
ये छल ये भुलावे
महंगाई के चक्रवात में
फंसा हुआ देश
गंदी राजनीति का
फैलता हुआ कोढ़
नित नयी समस्याओं का आयात
और भीख मांगना
समाधान के लिये
करों का बोझ
जरूरी कहना, उत्थान के लिए
कितना बड़ा धोखा है
हर्रा है ना फिटकरी है.
कहते हैं फिर भी
रंग चोखा है

ये कुबेर के बेटे
समाजवाद के हिमायती हैं
इनके घरों में जाकर देखो
इनके कुत्ते तक विलायती हैं
देश को महंगायी के फंदे मे टांग कर
वातनुकूलित कमरे मे सोते हैं
आठों पहर
विदेशी नशे का बोझ धोते हैं
ये सब रंगे सियार हैं
इन्हे केवल कुर्सियों से प्यार है
कुर्सियों के लिए
इधर उधर लुढकते हैं
बेपेंदी के लोटे हैं
केवल नाम के बड़े हैं
दर्शन के छोटे हैं
आदमी की शक्ल में
छिपे भेड़िये हैं
विदेशों के गुर्गे हैं
घर के भेदिये हैं
ना ये नेता हैं
ना ये प्रणेता हैं
ना ही ये जनता के सेवक हैं
इन्हें पहचानों
ये नैया डुबाकर
तैरने वाले केंवट हैं
कुशल खिलाड़ी हैं
समाजवादी नारों को
फुटबाल की तरह
हवा मे उछालते हैं
विरोधियों को
हर जगह पछाड़ते हैं
कलाबाजियाँ दिखाते हैं भीड़ को
तोड़ते मरोड़ते हैं
देश की रीढ को
सुविधाओं के अखाड़े में
जनता का दर्द झेलते हैं
राजनीति को खेल समझकर
बड़े मजे से खेलते हैं.


-- :  बसंत देशमुख  :-- 

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