मुक्तक

विश्वास

मै दिया ही  हूँ सही  तारा  नहीं  हूँ ,
पर सुबह तक रात से हारा नहीं हूँ,
गीत  हूँ  इतिहास  में  रह जाऊँगा
मै सड़क पर कूदता  नारा नहीं  हूँ  |

प्रतीक्षा

खून  आँखों  में  उतर आने  दो,
रंग  आंसू  का  बदल  जाने  दो,
आग सुलगी है धुँआ निकला है 
ठहरो दो पल इसे जल जाने दो  |


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सपने  बिखरे  यहाँ  उजाले  में  दिन  के,
ज्यों  आंधी  में नीड़ों  के  बिखरे  तिनके,
काट लिया जीवन ने जब विषधर बनकर--
हमने काटा उसे उँगलियॉ गिन गिन  के


रोशनी आँख  की  बुझ  गयी  है,
हड्डी भी रीढ़ की झुक  गयी  है
मौत को कब से जी रहे हैं लोग
जिन्दगी इनकी कब से चुक गयी है ।


ना कोई चुड़ी ही टूटी
ना ही कोई घूँघट रोया
किसकी थी वह लाश बेकफन
जिसे देखकर मरघट रोया ।

 -- :  बसंत देशमुख  :--

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