जवाब माँगते प्रश्न

थोड़ी खुशी
ज्यादा गम
पल भर की हँसी
और फिर आँखें नम .
हम सबकी जिंदगी का
बस एक ही क्रम
अभावग्रस्त बचपन
पढ़ता है किस्सा नवाबों का
यौवन बनता है
सारहीन शीर्षक किताबों का .
और बुढ़ापा केवल
खंडहर ख्वाबों का .
बहुतों ने ये क्रम
बीच मे तोड़ा है
मौत से पहले
बेमौत कफन ओढ़ा है .
आप ने भी देखा होगा
रेल की पांतों पर
बहता हुआ उदास खून .
सच कहो तो वहीं
आपने देखा होगा
अपने देश का मजमून
की वह देश
जो कन्याकुमारी से
हिमालय तक फैला है .
हमारा है होता नहीं यकीन
की हमें रहने को नसीब नहीं
गज भर भी जमीन .
किराये के मकान मे जन्मे
किराये के मकान से
निकलती है जिनकी लाश
और पूरी नहीं हो पाती
जिंदगी भर
सिर्फ एक झोपड़ी की तलाश .
वे क्या मनायें
राष्ट्रीय पर्व .
किस बात पर करें गर्व .
क्या दीप जलायें
क्या रोशनी करें .
जिनकी छाती खुली हुई है
वो क्या सिर पर
ओढ़नी धरें .
वह देखो एक आदमी
सोने के सिंहासन पर
बैठा हुआ है .
एक आदमीं
सिर्फ हड्डियों का ढांचा
जिस पर बरसों से
एक ही फटा कुर्ता
टंगा हुआ है .
और ये खुशियों के जुलूस
ये आज़ादी के जश्न .
सामने भीख मांगते बच्चे
जवाब मांगते प्रश्न.
क्या इसलिये झूला था
भगत सिंग फांसी के फॅनदे में
क्या इसीलिये झेली थी
गोलियाँ आज़ाद ने
की दर्द तो मिट जाये जख्मों का
पर बहता रहे मवाद ?
बापू गाँधी
तेरे देश की मेहनत
गिरवी हो गयी है
चाँदी के चंद टुकड़ो में
गुलामी की वही
पुरानी लकीरें
उभर आई हैं
फिर से आज़ाद मुखडों में
मैने माना -
ये कल, ये कारखाने
आये हैं
आज़ादी के पौधे उगाने
पर मैने खेतों मे
फसलों को क्या
किसानो को सूखते देखा है
कोई तो बचाओ
इस देश की नैया को
मैने मल्लाहों को
डूबते देखा है
गुलामी के पिंजरे से
निकले हुए परिंदे हैं
नारे रटे हुए हैं
आज़ाद हैं मगर
उड़ नहीं सकते
हमारे पंख तो
पहले से कटे हुए हैं
आओ पीड़ा की वार्षगांठ मनायें
तिरंगा ले आयें
और टांग दें
लाल किले की मुंडेर पर ऐसा
की आसमान मे झूमता रहे
आज़ादी के रथ से
इतना कह दें
की गलियों को छोड़कर
केवल राजपथों ही
ना घूमता रहे

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