पर बहारें व्यर्थ ही हैं जब तलक बुलबुल न आए ।
आँख से बहती नदी से आज मैं घबरा गया हूँ ,
की तेरे आने से पहले ये जिंदगी ही धूल न जा ।
की तेरे आने से पहले ये जिंदगी ही धूल न जा ।
कौन गहरी नींद सोकर मेरी रातों को जगाए ,
कौन मुझको याद आकर मेरी यांदें भूल जाए ।
क्यों मेरे विश्वास के आलिंगनो में ज़ोर कम है ,
कौन है जो आज मेरे होकर आज लगते हैं पराए ।
कौन मेरी कल्पना की बंजारों में हल चलाए ,
कौन मेरी अर्चना की आँखों में काजल लगाए ।
क्यों कलम अब उड़ रही है पाँव अपने पर लगाये ,
कौन है जो गा रही है मेरे सुर में सुर मिलाए ।
और कितनी भावनाएँ गीत जिन पर ढल न पाए ।
क्या खबर है तुझको मेरे मोम के नन्हे कन्हिया ,
और कितने कालिया हैं कालिदाह में फन उठाए ।
और कितनी राह बाकी पाँव जिन पर चल न पाए ,
और कितने पाँव हैं जो ठाँव तक भी चल न पाए ।
अब न कोई मंजिलों को बेवफा कह कर पुकारे ,
इसलिए खुद आ रही है वो देख मंजिल सर झुकाये ।
इसलिए खुद आ रही है वो देख मंजिल सर झुकाये ।
और कितने दीप हैं जो आँधियों ने हैं बुझाए ,
और कितने दीप हैं जो आंचलों ने हैं बचाये ।
आने वालों रास्ते पर रोशनी को कम न समझो ,
मैं तो खुद भी जल रहा हूँ हाथ में दीपक जलाये ।
मैं तो खुद भी जल रहा हूँ हाथ में दीपक जलाये ।
और कितनी डालियाँ हैं फूल जिन पर खिल न पाये ,
और कितने फूल हैं जो फूल कर भी फल न पाये ।
और कितनी हैं बहारें जो भटकती हैं वीराने में ,
और हैं मधुमास कितने जो चमन ने खुद लुटाए ।
और हैं मधुमास कितने जो चमन ने खुद लुटाए ।
मैं तो निसदिन जल रहा हूँ कौन है बाती बनाये ,
किन्तु मंजिल तक चले वो जो मुझे साथी बनाये ।
जब जमाना लिख रहा है स्वर्ण से इतिहास अपना ,
कौन है जो मेरी माटी अपनी ही थाती बनाये ।
कौन है जो मेरी माटी अपनी ही थाती बनाये ।
-- : बसंत देशमुख :--
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