पसीना

धनी देश के
भूखे  बेटों
आलस से मत बैठो ।
वो देखो
लोग चोटी  पर चढ़ रहे  हैं
और हम
केवल सपने गढ़ रहे हैं ।
तराई में बैठ कर
आपस में लड़ रहे हैं ।
उठो !
धरती के दर्द को सहलाओ ,
बादल को मत ताको
फसलों को
पसीने से नहलाओ ।
तुम्हारा  श्रम
खेतों में तान कर सीना निकलेगा
फसलों को चीर कर देखना
पसीना निकलेगा ।

हमारा सूरज
खेतों में उगता  है
खेतो में डूबता है
दस बूंद खून
कलेजे  में सूखता है
तब एक बूंद  पसीना
माथे से चूहता  है ।

मगर अफ़सोस
पसीना पानी के मोल बिकता है
इसलिए हर मजदुर, हर किसान,
हर मेहनतकश इन्सान
बीमार सा दिखता है ।
और उनके गुलशन
गुलजार हो गये
हमारे वीराने वीरान हो गये ।
हमारे पसीने पे जीने वाले लोग
हमसे ज्यादा महान हो गये ।
बात छोटी ही सही
खोटी नहीं है
आज कितने के तन पर
लंगोटी नहीं है
पेट को रोटी नहीं है ।
इसलिए कल
कलम छोड़कर
तलवार उठालुं
तो मत कहना
और तुम्हे भी
आवाज दूंगा
मेरे आगे न सही
पीछे ही रहना
क्यों कि अब हरे घाव
बातों से सहलते नहीं हैं
भूखे बच्चे लोरियों से
बहलते नहीं हैं
इंसानियत रोज़ मरती है
आदमी फिर भी जीता है
अपमानो का ज़हर
परायों के लिये पीता है
क्या एक बीते का पापी पेट
सचमुच इतना गहरा है
कि सदियों से
आज तक रीता ही रीता है।
इधर गोदामों  में सड़ता अनाज रहे
उधर झोपड़ियां दानो को मुहताज़ रहे
काम हमारा रहे
नाम उनका रहे
उनके सर पर
हमारा ताज रहे
उठो अब अधिक नहीं सहेंगे
उन्हें बेताज करके रहेंगे
ऐ वोट के खरीददारों देश के कर्णधारों
खुद खाओ रिस्तेदारों को खिलाओ 
हम अपने पसीने का हक़ मांगे
तो हम पर गोलियां बरसाओ
महंगाई में
श्रम का डूबता सफीना है
आज पसीना
खुद ही पसीना पसीना है
और ये ऊपर की
खिड़की से झांकने वाले
पसीने को पैमानों से नापने वाले
बीज नहीं बोते फसलें काट लेते हैं
हमारे और तुम्हारे
पसीने  को
आपस में बाँट लेते हैं ।
और आगे बस इतना कह दूँ
क्या ये सब चुपचाप सह लूँ ?
यह कैसी आजादी है
यहाँ  तो झोपड़ियां
महलों कि बांदी है।
महलों में दीवाली है
कुटियों में मातम है
श्रम बरबाद है
श्रम का शोषण आबाद है
आप कह लीजिये
मै नहीं कहूंगा
वतन आजाद है ,
वतन आजाद है।

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