चाँद रोया तो सितारों की आँख भर आई
एक रोया तो हजारों की आँख भर आई
सूखते देख धरती के समंदर सारे
मूक पत्थर के पहाड़ों की आँख भर आई
एक रोया तो हजारों की आँख भर आई
सूखते देख धरती के समंदर सारे
मूक पत्थर के पहाड़ों की आँख भर आई
जला के बाग बहारों की बात करता है
बूझा के दीप सितारों की बात करता है
फिर कोई नाव डुबाने की ये सजिश ना हो
आज तुफ़ान किनारों की बात करता है
बूझा के दीप सितारों की बात करता है
फिर कोई नाव डुबाने की ये सजिश ना हो
आज तुफ़ान किनारों की बात करता है
आँखों को खोलो जमाने को देखो
जो कल था चमन उस विराने को देखो
कहाँ ढुंढते सरहदों में हो दुश्मन
उठो पहले अपने सिरहाने को देखो
-- : बसंत देशमुख :--
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