शहीदों के प्रति

शांति को खतरा हुआ जब शस्त्र से
सरहदें    लाँघी   गयी   उन्माद  में
शीश  पर   बांधे  तिरंगे  का कफन
घुस  पड़े  वो  दुश्मनो  की मांद  में

धूप  सरहद की ठिठुरती जब मिली
गोलियाँ  बारूद  बम  की  छाँव  में
कर्ज़  माटी   का   चुकाने  चल  पड़े
देश  की  अस्मत  लगी  थी दाँव  में

धूल  माथे  से  लगाकर  देश  की
चल पड़े बाज़ी  लगाने  जान  की
बाहुओं मे बल हिमालय का लिये
पाँव में  गति बाँध ली  तूफान की

वज्र की छाती  अड़ा दी  सामने
टैंक के  गोले  कई  जख्मी  हुए
गोलियाँ   भागी   पनाहें  माँगती
दुश्मनो  के गढ़ सभी ढहते गये

खून  की  नदियाँ  वहां  बहने  लगी
शत्रु विचलित  हो  गये  हर  वार से
दुश्मनो को ये सबक भी मिल गया
दुश्मनी  होती   बुरी   तलवार    से

एक  गोली  तब कहीं से आ लगी
और  छलनी जब कलेजा हो गया
हिंद की जय  से गगन  गूँजा तभी
एक  तारा  आसमां  में   खो  गया

खून  जो  फैला धरा  की गोद में
खून  था  या माँ  तुम्‍हारा  दूध था
एक  लाठी  थी बुढापे की किसी
या किसी की माँग का सिंदूर था

पर  वतन  के वास्ते जो  मर मिटा
मौत  ने उसको अमर एसा किया
हर  सुबह  सूरज  सलामी  दे उसे
शाम  को  सलामी  देगा  हर दिया

जब विजय का सेहरा सिर पर बँधा
था   तिरंगा  आसमान   में  झूमता
रवि  हिमानी  वादियों को लाँघ कर
सरहदों  की  सरजमीं   को  चूमता

पर्वतों   के   शीश   उंचे हो   गये
और  नदियाँ देख बल खाने लगी
देख सागर की  लहर के गर्व को
ये   हवाएं   आज   इतराने   लगी

लौट कर खुशियाँ चमन मे आ गयीं
लौट  कर   आई   हवाएं   युद्ध    से
लौट  कर   सेना जगह पर आ गयी
वे गये  थे   लौट   कर  न  आ   सके


-:-:- बसंत देशमुख -:-:-

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