सही रास्ता

रास्ते की धूल
करती थी हमेशा
एक ही भूल
आंधियों की बांह पकड़
आकाश में उड़ती
और फिर बेसहारा हो
गिरती
नभचुम्बी महलों की मुंडेरों पर
भव्य मंदिरों के कंगूरों पर
बेचारी हर बार
दुतकारी गयी
मुडेरों से झाड़कर
रास्तों पर फिर से
उतारी गयी
उन्हीं रास्तों से गुजरा
एक पद यात्री महापुरुष
वही धूल पाँवों पर झुके
कोटि शीशों पर
चढकर आज सोचती है
युगों तक रौंदी गयी आस्था
सही वक्त आने पर
पा लेती है
सही रास्ता

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