सांसो पर लिखो निबंध

मत लिखो आँख में अभी कहानी आँसू  से
छेड़ो अधरों पर छंद  कुटिल  मुस्कानो  के

मुखड़ों  के  सुने आँगन में
चिन्ताओं  की  पहुनाई  है
आँखों  के  मानसरोवर  में
अब मरुथल कि परछाई है

बाज़ारों में अब पहले से बस
कफ़न अधिक ही बिकता है
गलियों  में   डेरा  डाल  पड़ी
अब  मरघट  की  तन्हाई  है

मत  दो उपहार धड़कनों को मलयानिल का --
सांसों  पर  लिखो  निबंध  निडर  तुफानो  के ।

आशीष  मिले  बन्दूकों  के
चौराहों   के  कोलाहल  को
सौगंध  उठाकर  आंसू  की
उगली आँखे दावानल को ।

मुर्दों   को   प्राण   दान  देने
जो तन का आसव लुटा गये
उनकी   खाली   अंजुरियों में
बस भरते गये हलाहल को ।

मत भटकाओ  श्रम को  भ्रम के चौराहों पर -
मोड़ो  मंजिल  को  अंध   चरण  उत्थानों के ।

-- : बसंत देशमुख :--  

कोई टिप्पणी नहीं: