मुखरित मौन हूँ मैं


एक उजड़े नीड़ का
बिखरा हुआ आकाश हूँ मैं
धुंध में खोई किरण का
ही अडिग विश्वास हूँ मैं !

हौसला हूँ मांझियों का
नाव जिनकी डूबती हो
मैं शिखा हूँ दीप की जो
आँधियों से जूझती हो !

स्वप्न हूँ मै रात का जो
भोर में ही टूट जाता
एक खंडित साधना हूँ
देव जिससे रूठ जाता !

पूछती हैं अजनबी सी
ये दिशाएं कौन हूँ मै
शोर हाहाकार का हूँ
या की मुखरित मौन हूँ मैं !
-:-:- बसंत देशमुख -:-:-

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