नई रोशनी

आज शहरों में
जो फैली नयी रोशनी है
उसके तन पर
न तो ठीक से कपड़ा है
न ही सिर पर ओढ़नी है
कीलर के परिवेश में
आज भारत की सोहनी है
नयी रोशनी की छत पर जो लेटी है
अफसरों की पत्नियाँ हैं
अमीरों की चहेती हैं
भारतीय संस्कृति तो
शहरों की परित्यक्ता है
गांवों की बेटी है
नयी रोशनी को
डालने दो डोरे
शहरों पर
शहरों के महलों पर
भारतीय संस्कृति को
बांधने दो राखी
गांवों में शहरों में
झोपड़ियों की
कलाइयों पर


                                                               -- : बसंत देशमुख :--

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