राजतिलक कब होगा

कलश  चढ़  गये  है , झूठ  के  मंदिर  पर --
शिलान्यास कब होगा सत्य की सराय का ।

भटकी   हरियाली    को,
लूट      रहा      ठुंठ    है
कथा  सत्यनारायण की
बांच   रहा     झूठ    है ।

एकता    के    नारे   सब
बो      रहे       अनेकता,
भाइयों    के    झगड़ें  का
निर्णायक      फूट     है ।

पढ़ने   से   उब   गये   एक  ही   कथानक --
शुभारम्भ   कब  होगा   नूतन  अध्याय  का

सूरज  की  किरणो  को
केतुओं      ने        घेरा
उदयाचल    उगल  रहा
नित     नया    अँधेरा ।

रोशनी   के  केंचुल  को
देह       से     उतारकर
ओढ़कर   कफ़न    कहीं
पर  सो   गया  सबेरा ।

फल   रहा    है  अंधकार   फूलने   से   पहले--
राजतिलक  कब  होगा निर्वासित न्याय का ।











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