जिंदगी की नथ


मुस्कुराहटों  की  गोद  में  रो  रही  है  जिंदगी  हमारी
तप्त  मरूथलों की गोद में सो रही है जिंदगी हमारी ।

 आँख से  कहानियों की हर व्यथा
हाशिये   में   होंठ   के    उतारते
एक  गीत  को  अजर अमर बना
जिंदगी  को  कोटि  बार  वारते ।

 कागज़ी जमीन पर यथार्थ  बो  रही है  जिंदगी   हमारी
मुस्कुराहटों  की  गोद  में ....................................

सुख की  मृग  मरीचिका  तलाशते
हमको आँसुओं की  ही नदी मिली
चाहते    थे       चांदनी     बिखेरना
मुट्ठियों   में   थी   हमें  बदी मिली

श्रापग्रस्त पूर्वजों का  बोझ  ढो रही है  जिंदगी  हमारी
मुस्कुराहटों  की  गोद  में ...................................

 उम्र को  न आज तक पता चला
जिंदगी की नथ कहाँ उतर गयी
कौन  सी जहर  घुली मिली हवा
फेफड़ों को सांस ही कुतर गयी

चिर अनन्त शून्य में  विलीन हो रही है  जिंदगी हमारी 
मुस्कुराहटों  की  गोद  में .....................................


-:-:- बसंत देशमुख -:-:-

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