जरा सोच लेना
पढ़ने से पहले जरा सोच लेना
शब्दों से आंसूं नहीं पोंछ लेना,
ज़माने के पृष्ठों में जो मिल सके ना
हमें उन सवालों का उत्तर है देना |
कुछ लोग क्यों सो रहे हैं मौज में हैं
गरीबों के बेटे ही क्यों फ़ौज में हैं ,
क्यों इन अमीरों कि कोठी खड़ी है
पसीने से जादा क्यों रोटी बड़ी है |
यंहा बस चिमनियों की सांसें गरम हैं
चूल्हों से उठता धुआं तक नहीं है ,
यहाँ कुछ अमीरो को मिलती दवायें
गरीबों की खातिर दुआ तक नहीं है |
इधर हम पसीने से लथपथ खड़े हैं
उधर लोग बैठे हैं मुखड़े सजाये ,
उधर रोटियों कि फसल लहलहाती
इधर लोग है कबसे टुकड़े न पाये |
जिन्हे कुछ हमारी फिकर ही नहीं है
उन्हें अब सुला दो कि उठने न पायेँ ,
बगावत का झंडा लिए चल पड़े हैं
कोशिश यही हो कि झुकने न पायें |
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